Tuesday 8 August 2023

भगवान की कृपा को समझिए

 *प्रेरक कहानी: भगवान की कृपा को समझिए*


एक व्यक्ति काफी दिनों से चिंतित चल रहा था जिसके कारण वह काफी तथा तनाव में रहने लगा था। वह इस बात से परेशान था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है, किसी ना किसी रिश्तेदार का उसके यहाँ आना जाना लगा ही रहता है...


इन्ही बातों को सोच सोच कर वह काफी परेशान रहता था तथा बच्चों को अक्सर डांट देता था तथा अपनी पत्नी से भी ज्यादातर उसका किसी न किसी बात पर झगड़ा चलता रहता था...


एक दिन उसका बेटा उसके पास आया और बोला पिताजी मेरा स्कूल का होमवर्क करा दीजिये, वह व्यक्ति पहले से ही तनाव में था तो उसने बेटे को डांट कर भगा दिया लेकिन जब थोड़ी देर बाद उसका गुस्सा शांत हुआ तो वह बेटे के पास गया तो देखा कि बेटा रो कर सो गया है ,और उसके हाथ में उसके होमवर्क की कॉपी है। उसने कॉपी लेकर देखी, और जैसे ही उसने कॉपी नीचे रखनी चाही, उसकी नजर होमवर्क के टाइटल पर पड़ी...


होमवर्क का टाइटल था...


वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगतीं लेकिन बाद में वे अच्छी ही होती हैं...


इस टाइटल पर बच्चे को एक पैराग्राफ लिखना था जो उसने लिख लिया था। उत्सुकतावश उसने बच्चे का लिखा पढना शुरू किया, बच्चे ने लिखा था...


मैं अपने फाइनल एग्जाम को बहुंत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये बिलकुल अच्छे नहीं लगते लेकिन इनके बाद स्कूल की छुट्टियाँ पड़ जाती हैं...


मैं ख़राब स्वाद वाली कड़वी दवाइयों को बहुत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये कड़वी लगती हैं लेकिन ये मुझे बीमारी से ठीक करती हैं...


मैं सुबह - सुबह जगाने वाली उस अलार्म घड़ी को बहुत धन्यवाद् देता हूँ जो मुझे हर सुबह बताती है कि मैं जीवित हूँ...


मैं ईश्वर को भी बहुत धन्यवाद देता हूँ जिसने मुझे इतने अच्छे पिता दिए क्योंकि उनकी डांट मुझे शुरू में तो बहुत बुरी लगती है लेकिन वो मेरे लिए खिलौने लाते हैं, मुझे घुमाने ले जाते हैं और मुझे अच्छी अच्छी चीजें खिलाते हैं और मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पास पिता हैं क्योंकि मेरे दोस्त सोहन के तो पिता ही नहीं हैं...


बच्चे का होमवर्क पढने के बाद वह व्यक्ति जैसे अचानक नींद से जाग गया हो। उसकी सोच बदल सी गयी। बच्चे की लिखी बातें उसके दिमाग में बार बार घूम रही थी। खासकर वह लास्ट वाली लाइन। उसकी नींद उड़ गयी थी। फिर वह व्यक्ति थोडा शांत होकर बैठा और उसने अपनी परेशानियों के बारे में सोचना शुरू किया...


मुझे घर के सारे खर्चे उठाने पड़ते हैं इसका मतलब है कि मेरे पास घर है और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से बेहतर स्थिति में हूँ जिनके पास घर नहीं है...


मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है इसका मतलब है कि मेरा परिवार है, बीवी बच्चे हैं और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से ज्यादा खुशनसीब हूँ जिनके पास परिवार नहीं हैं और वो दुनियाँ में बिल्कुल अकेले हैं...


मेरे यहाँ कोई ना कोई मित्र या रिश्तेदार आता जाता रहता है, इसका मतलब है कि मेरी एक सामाजिक हैसियत है और मेरे पास मेरे सुख दुःख में साथ देने वाले लोग हैं...


हे ! मेरे भगवान् ! तेरा बहुंत बहुंत शुक्रिया... मुझे माफ़ करना, मैं तेरी कृपा को पहचान नहीं पाया...


इसके बाद उसकी सोच एकदम से बदल गयी, उसकी सारी परेशानी, सारी चिंता एक दम से जैसे ख़त्म हो गयी। वह एकदम से बदल सा गया। वो अपने बेटे से लिपट गया आंखो से आंसू बह रहे थे और मन ही मन अपने छोटे से बेटे से बो माफी मांग रहा था ,बेटे के माथे को चूमकर वो अपने बेटे को तथा ईश्वर को धन्यवाद देने लगा...


हमारे सामने जो भी परेशानियाँ हैं, हम जब तक उनको नकारात्मक नज़रिये से देखते रहेंगे तब तक हम परेशानियों से घिरे रहेंगे लेकिन जैसे ही हम उन्हीं चीजों को, उन्ही परिस्तिथियों को सकारात्मक नज़रिये से देखेंगे, हमारी सोच एकदम से बदल जाएगी, हमारी सारी चिंताएं, सारी परेशानियाँ, सारे तनाव एक दम से ख़त्म हो जायेंगे और हमें मुश्किलों से निकलने के नए नए रास्ते दिखाई देने लगेंगे।

 

*प्रेरक जानकारी: शिव की माला में गुंथे 108 मुण्ड किसके?* 🔱🚩

 

🌷 भगवान शिव और सती का अद्भुत प्रेम शास्त्रों में वर्णित है। इसका प्रमाण है सती के यज्ञ कुण्ड में कूदकर आत्मदाह करना और ‌सती के शव को उठाए क्रोधित शिव का तांडव करना। हालांकि यह भी शिव की लीला थी क्योंकि इस बहाने शिव 51 शक्ति पीठों की स्थापना करना चाहते थे।


🔱 शिव ने सती को पहले ही बता दिया था कि उन्हें यह शरीर त्याग करना है। इसी समय उन्होंने सती को अपने गले में मौजूद मुंडों की माला का रहस्य भी बताया था।


      💀 *मुण्ड माला का रहस्य*💀


एक बार नारद जी के उकसाने पर सती भगवान शिव से जिद करने लगी कि आपके गले में जो मुंड की माला है उसका रहस्य क्या है। जब काफी समझाने पर भी सती न मानी तो भगवान शिव ने राज खोल ही दिया। शिव ने पार्वती से कहा कि इस मुंड की माला में जितने भी मुंड यानी सिर हैं वह सभी आपके हैं। सती इस बात का सुनकर हैरान रह गयी।


सती ने भगवान शिव से पूछा, यह भला कैसे संभव है कि सभी मुंड मेरे हैं। इस पर शिव बोले यह आपका 108 वां जन्म है। इससे पहले आप 107 बार जन्म लेकर शरीर त्याग चुकी हैं और ये सभी मुंड उन पूर्व जन्मों की निशानी है। इस माला में अभी एक मुंड की कमी है इसके बाद यह माला पूर्ण हो जाएगी। शिव की इस बात को सुनकर सती ने शिव से कहा मैं बार-बार जन्म लेकर शरीर त्याग करती हूं लेकिन आप शरीर त्याग क्यों नहीं करते।


🔱 शिव हंसते हुए बोले 'मैं अमर कथा जानता हूं इसलिए मुझे शरीर का त्याग नहीं करना पड़ता।' इस पर सती ने भी अमर कथा जानने की इच्छा प्रकट की। शिव जब सती को कथा सुनाने लगे तो उन्हें नींद आ गयी और वह कथा सुन नहीं पायी। इसलिए उन्हें दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर का त्याग करना पड़ा।


 शिव ने सती के मुंड को भी माला में गूंथ लिया। इस प्रकार 108 मुंड की माला तैयार हो गयी। सती ने अगला जन्म पार्वती के रूप में हुआ। इस जन्म में पार्वती को अमरत्व प्राप्त होगा और फिर उन्हें शरीर त्याग नहीं करना पड़ा..!!

   *🙏🏿🙏🏽🙏ॐ नमः शिवाय*🙏🏾🙏🏻🙏🏼

पौराणिक काल के चौबीस चर्चित श्राप

 *🪷।। पौराणिक काल के चौबीस चर्चित श्राप ।।🪷*


हिन्दू पौराणिक ग्रंथो में अनेको अनेक श्रापों का वर्णन मिलता है। हर श्राप के पीछे कोई न कोई कथाये जरूर मिलती है। प्रस्तुत है हिन्दू धर्म ग्रंथो में उल्लेखित चौबीस ऐसे ही प्रसिद्ध श्राप और उनके पीछे की कहानी-


*१. युधिष्ठिर का स्त्री जाति को श्राप-*


महाभारत के शांति पर्व के अनुसार युद्ध समाप्त होने के बाद जब कुंती ने युधिष्ठिर को बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था तो पांडवों को बहुत दुख हुआ। तब युधिष्ठिर ने विधि-विधान पूर्वक कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया। माता कुंती ने जब पांडवों को कर्ण के जन्म का रहस्य बताया तो शोक में आकर युधिष्ठिर ने संपूर्ण स्त्री जाति को श्राप दिया कि- आज से कोई भी स्त्री गुप्त बात छिपा कर नहीं रख सकेगी।


*२. ऋषि किंदम का राजा पांडु को श्राप-*


महाभारत के अनुसार एक बार राजा पांडु शिकार खेलने वन में गए। उन्होंने वहां हिरण के जोड़े को मैथुन करते देखा और उन पर बाण चला दिया। वास्तव में वो हिरण व हिरणी ऋषि किंदम व उनकी पत्नी थी। तब ऋषि किंदम ने राजा पांडु को श्राप दिया कि जब भी आप किसी स्त्री से मिलन करेंगे। उसी समय आपकी मृत्यु हो जाएगी। इसी श्राप के चलते जब राजा पांडु अपनी पत्नी माद्री के साथ मिलन कर रहे थे, उसी समय उनकी मृत्यु हो गई।

 

*३. माण्डव्य ऋषि का यमराज को श्राप-*


महाभारत के अनुसार माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। राजा ने भूलवश उन्हें चोरी का दोषी मानकर सूली पर चढ़ाने की सजा दी। सूली पर कुछ दिनों तक चढ़े रहने के बाद भी जब उनके प्राण नहीं निकले, तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया।


तब ऋषि यमराज के पास पहुंचे और उनसे पूछा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार झूठे आरोप की सजा मिली। तब यमराज ने बताया कि जब आप १२ वर्ष के थे, तब आपने एक पतिंगे की पूंछ में सींक चुभाई थी, उसी के फलस्वरूप आपको यह कष्ट सहना पड़ा।


तब ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि १२ वर्ष की उम्र में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता। तुमने छोटे अपराध का बड़ा दण्ड दिया है। इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें शुद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा। ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लिया।


*४. नंदी का रावण को श्राप-*


वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश गया। वहां उसने नंदीजी को देखकर उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई और उन्हें बंदर के समान मुख वाला कहा। तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया कि बंदरों के कारण ही तेरा सर्वनाश होगा।


*५. कद्रू का अपने पुत्रों को श्राप-*


महाभारत के अनुसार ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थीं। कद्रू सर्पों की माता थी व विनता गरुड़ की। एक बार कद्रू व विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और शर्त लगाई। विनता ने कहा कि ये घोड़ा पूरी तरह सफेद है और कद्रू ने कहा कि घोड़ा तो सफेद हैं, लेकिन इसकी पूंछ काली है।


कद्रू ने अपनी बात को सही साबित करने के लिए अपने सर्प पुत्रों से कहा कि तुम सभी सूक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूंछ से चिपक जाओ, जिससे उसकी पूंछ काली दिखाई दे और मैं शर्त जीत जाऊं। कुछ सर्पों ने कद्रू की बात नहीं मानी। तब कद्रू ने अपने उन पुत्रों को श्राप दिया कि तुम सभी जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे।


*६. उर्वशी का अर्जुन को श्राप-*


महाभारत के युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए, तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गई। यह देख अर्जुन ने उन्हें अपनी माता के समान बताया। यह सुनकर क्रोधित उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया कि तुम नपुंसक की भांति बात कर रहे हो। इसलिए तुम नपुंसक हो जाओगे, तुम्हें स्त्रियों में नर्तक बनकर रहना पड़ेगा। यह बात जब अर्जुन ने देवराज इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के दौरान यह श्राप तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।


*७. तुलसी का भगवान विष्णु को श्राप-*


शिवपुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक राक्षस था। उसकी पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी पतिव्रता थी, जिसके कारण देवता भी शंखचूड़ का वध करने में असमर्थ थे। देवताओं के उद्धार के लिए भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप लेकर तुलसी का शील भंग कर दिया। तब भगवान शंकर ने शंखचूड़ का वध कर दिया। यह बात जब तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया। इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु की पूजा शालीग्राम शिला के रूप में की जाती है।


*८. श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप-*


पाण्डवों के स्वर्गारोहण के बाद अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित ने शासन किया। उसके राज्य में सभी सुखी और संपन्न थे। एक बार राजा परीक्षित शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर निकल गए। तब उन्हें वहां शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए, जो मौन अवस्था में थे। राजा परीक्षित ने उनसे बात करनी चाहिए, लेकिन ध्यान में होने के कारण ऋषि ने कोई जबाव नहीं दिया।

ये देखकर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। यह बात जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चली तो उन्होंने श्राप दिया कि आज से सात दिन बात तक्षक नाग राजा परीक्षित को डंस लेगा, जिससे उनकी मृत्यु हो जाएगी।


*९. राजा अनरण्य का रावण को श्राप-*


वाल्मीकि रामायण के अनुसार रघुवंश में एक परम प्रतापी राजा हुए थे, जिनका नाम अनरण्य था। जब रावण विश्वविजय करने निकला तो राजा अनरण्य से उसका भयंकर युद्ध हुई। उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई। मरने से पहले उन्होंने रावण को श्राप दिया कि मेरे ही वंश में उत्पन्न एक युवक तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इन्हीं के वंश में आगे जाकर भगवान श्रीराम ने जन्म लिया और रावण का वध किया।


*१०. परशुराम का कर्ण को श्राप-*


महाभारत के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के ही अंशावतार थे। सूर्यपुत्र कर्ण उन्हीं का शिष्य था। कर्ण ने परशुराम को अपना परिचय एक ब्राह्मण के रूप में दिया था। एक बार जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर सो रहे थे, उसी समय कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया। गुरु की नींद में विघ्न न आए, ये सोचकर कर्ण दर्द सहते रहे, लेकिन उन्होंने परशुराम को नींद से नहीं उठाया।


नींद से उठने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण ब्राह्मण नहीं बल्कि क्षत्रिय है। तब क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता होगी, उस समय तुम वह विद्या भूल जाओगे।


*११. तपस्विनी का रावण को श्राप-*


वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार रावण अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था। तभी उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, जो भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ चलने को कहा। उस तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी।


*१२. गांधारी का श्रीकृष्ण को श्राप-*


महाभारत के युद्ध के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण गांधारी को सांत्वना देने पहुंचे तो अपने पुत्रों का विनाश देखकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार पांडव और कौरव आपसी फूट के कारण नष्ट हुए हैं, उसी प्रकार तुम भी अपने बंधु-बांधवों का वध करोगे। आज से छत्तीसवें वर्ष तुम अपने बंधु-बांधवों व पुत्रों का नाश हो जाने पर एक साधारण कारण से अनाथ की तरह मारे जाओगे। गांधारी के श्राप के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण के परिवार का अंत हुआ।


*१३. महर्षि वशिष्ठ का वसुओं को श्राप-*


महाभारत के अनुसार भीष्म पितामह पूर्व जन्म में अष्ट वसुओं में से एक थे। एक बार इन अष्ट वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया। जब ऋषि को इस बात का पता चला तो उन्होंने अष्ट वसुओं को श्राप दिया कि तुम आठों वसुओं को मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेना होगा और आठवें वसु को राज, स्त्री आदि सुखों की प्राप्ति नहीं होगी। यही आठवें वसु भीष्म पितामह थे।


*१४. शूर्पणखा का रावण को श्राप-*


वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण की बहन शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।


*१५. ऋषियों का साम्ब को श्राप-*


महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार एक बार महर्षि विश्वामित्र, कण्व आदि ऋषि द्वारका गए। तब उन ऋषियों का परिहास करने के उद्देश्य से सारण आदि वीर कृष्ण पुत्र साम्ब को स्त्री वेष में उनके पास ले गए और पूछा कि इस स्त्री के गर्भ से क्या उत्पन्न होगा। क्रोधित होकर ऋषियों ने श्राप दिया कि श्रीकृष्ण का ये पुत्र वृष्णि और अंधकवंशी पुरुषों का नाश करने के लिए लोहे का एक भयंकर मूसल उत्पन्न करेगा, जिसके द्वारा समस्त यादव कुल का नाश हो जाएगा।


*१६. दक्ष का चंद्रमा को श्राप-* 


शिवपुराण के अनुसार प्रजापति दक्ष ने अपनी २७ पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से करवाया था। उन सभी पत्नियों में रोहिणी नाम की पत्नी चंद्रमा को सबसे अधिक प्रिय थी। यह बात अन्य पत्नियों को अच्छी नहीं लगती थी। ये बात उन्होंने अपने पिता दक्ष को बताई तो वे बहुत क्रोधित हुए और चंद्रमा को सभी के प्रति समान भाव रखने को कहा, लेकिन चंद्रमा नहीं माने। तब क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दिया।


*१७. माया का रावण को श्राप-*


रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ भी छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपनी बातों में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया।


इस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासना युक्त होकर मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया। इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।


*१८. शुक्राचार्य का राजा ययाति को श्राप-*


महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार राजा ययाति का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के साथ हुआ था। देवयानी की शर्मिष्ठा नाम की एक दासी थी। एक बार जब ययाति और देवयानी बगीचे में घूम रहे थे, तब उसे पता चला कि शर्मिष्ठा के पुत्रों के पिता भी राजा ययाति ही हैं, तो वह क्रोधित होकर अपने पिता शुक्राचार्य के पास चली गई और उन्हें पूरी बात बता दी। तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने ययाति को बूढ़े होने का श्राप दे दिया था।


*१९. ब्राह्मण दंपत्ति का राजा दशरथ को श्राप-*


वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार जब राजा दशरथ शिकार करने वन में गए तो गलती से उन्होंने एक ब्राह्मण पुत्र का वध कर दिया। उस ब्राह्मण पुत्र के माता-पिता अंधे थे। जब उन्हें अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में अपने प्राणों का त्याग कर रहे हैं, उसी प्रकार तुम्हारी मृत्यु भी पुत्र वियोग के कारण ही होगी।


*२०. नंदी का ब्राह्मण कुल को श्राप-*


शिवपुराण के अनुसार एक बार जब सभी ऋषिगण, देवता, प्रजापति, महात्मा आदि प्रयाग में एकत्रित हुए तब वहां दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर का तिरस्कार किया। यह देखकर बहुत से ऋषियों ने भी दक्ष का साथ दिया। तब नंदी ने श्राप दिया कि दुष्ट ब्राह्मण स्वर्ग को ही सबसे श्रेष्ठ मानेंगे तथा क्रोध, मोह, लोभ से युक्त हो निर्लज्ज ब्राह्मण बने रहेंगे। शूद्रों का यज्ञ करवाने वाले व दरिद्र होंगे।


*२१. नलकुबेर का रावण को श्राप-*


वाल्मीकि रामायण के अनुसार विश्व विजय करने के लिए जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे वहां रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। अपनी वासना पूरी करने के लिए रावण ने उसे पकड़ लिया। तब उस अप्सरा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं। इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं। लेकिन रावण ने उसकी बात नहीं मानी और रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श करेगा तो उसका मस्तक सौ टुकड़ों में बंट जाएगा।


*२२. श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप-*


महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से पाण्डव पुत्रों का वध कर दिया, तब पाण्डव भगवान श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए महर्षि वेदव्यास के आश्रम तक पहुंच गए। तब अश्वत्थामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया। ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा।


महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वत्थामा और अर्जुन से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा। तब अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा ने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी।


यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन कर दिया और युगों-युगों तक भटकते रहने का शाप दिया था।


*२३. तुलसी का श्रीगणेश को श्राप-*


ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार तुलसीदेवी गंगा तट से गुजर रही थीं, उस समय वहां श्रीगणेश तप कर रहे थे। श्रीगणेश को देखकर तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। तब तुलसी ने श्रीगणेश से कहा कि आप मेरे स्वामी हो जाइए, लेकिन श्रीगणेश ने तुलसी से विवाह करने से इंकार कर दिया। क्रोधवश तुलसी ने श्रीगणेश को विवाह करने का श्राप दे दिया और श्रीगणेश ने तुलसी को वृक्ष बनने का।


*२४. नारद का भगवान विष्णु को श्राप-*


शिवपुराण के अनुसार एक बार देवऋषि नारद एक युवती पर मोहित हो गए। उस कन्या के स्वयंवर में वे भगवान विष्णु के रूप में पहुंचे, लेकिन भगवान की माया से उनका मुंह वानर के समान हो गया। भगवान विष्णु भी स्वयंवर में पहुंचे। उन्हें देखकर उस युवती ने भगवान का वरण कर लिया। यह देखकर नारद मुनि बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुमने मुझे स्त्री के लिए व्याकुल किया है। उसी प्रकार तुम भी स्त्री विरह का दु:ख भोगोगे। भगवान विष्णु ने राम अवतार में नारद मुनि के इस श्राप को पूरा किया।


*🙏।। आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र: द्वारा अग्रेषित पोस्ट ।।🙏*

तुलसी

 यह लेख चार (Four) भागों में लिखा गया है। चारों लेख अवश्य पढ़ें।

*तुलसी एक गुण अनेक*


तुलसी के बारे में घर-घर में सभी जानते हैं। हिंदू धर्म में तुलसी को विशेष महत्व दिया गया हैैं। कहा जाता हैं कि जहां तुसली फलती हैं, उस घर में रहने वालों को कोई संकट नहीं आते। स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद में तुलसी के अनेक गुण के बारे में बताया गया हैं। यह बात कम लोग जानते हैं कि तुलसी परिवार में आने वाले संकट के बारे में सुखकर पहले संकेत दे देती हैं। पेटलावद के ज्योतिषी आनंद त्रिवेदी बता रहे हैं कि तुलसी एक, लेकिन गुण अनेक किय तरह से हैं।


प्रकृति की अपनी एक अलग खासियत है। इसने अपनी हर एक रचना को बड़ी ही खूबी और विशिष्ट नेमत बख्शी है। इंसान तो वैसे भी प्रकृति की उम्दा रचनाओं में से एक है जो समझदारी और सूझबूझ से काम लेता है। इसके अलावा जानवरों की खूबी ये है कि वे आने वाले खतरे, मसलन भूकंपए सुनामी, पारलौकिक ताकतों आदि को पहले ही भांप सकने में सक्षम होते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग यह बात जानते हैं कि पौधों के भीतर भी ऐसी ही अलग विशेषता है, जिसे अगर समझ लिया जाए तो घर के सदस्यों पर आने वाले कष्टों को पहले ही टाला जा सकता है।


*क्यों मुरझाता है तुलसी का पौधा*


शायद कभी किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि चाहे तुलसी के पौधे पर कितना ही पानी क्यों ना डाला जाए उसकी कितनी ही देखभाल क्यों ना की जाएए वह अचानक मुरझाने या सूखने क्यों लगता है।


*क्या बताना चाहता है*

आपको यकीन नहीं होगा लेकिन तुलसी का मुरझाया हुआ पौधा आपको यह बताने की कोशिश कर रहा होता है कि जल्द ही परिवार पर किसी विपत्ति का साया मंडरा सकता है। कहने का अर्थ यह है कि अगर परिवार के किसी भी सदस्य पर कोई मुश्किल आने वाली है तो उसकी सबसे पहली नजर घर में मौजूद तुलसी के पौधे पर पड़ती है।

भगवान श्रीकृष्ण के हृदय का रहस्य

 जगन्नाथ मंदिर के कई रहस्य है जिन्हें आज तक कोई सुलझा नहीं पाया. मान्यता है कि यहां विराजमान भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में आज भी श्रीकृष्ण का हृदय धड़कता है. आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे का रहस्य और 12 साल में जगन्नाथ जी की मूर्ति बदलते समय क्यों बांध दी जाती है पुजारी की आंखों पर पट्टी.



भगवान श्रीकृष्ण के हृदय का रहस्


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीविष्‍णु ने द्वापर युग में श्रीकृष्‍ण के रूप में जन्म लिया था. श्रीकृष्ण ने क्योंकि मानव रूप में जन्म लिया था इसलिए प्रकृति के नियम अनुसार उनकी मृत्यु निश्चित थी. जब श्रीकृष्ण ने देहत्याग दी तब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया. इस दौरान एक आश्चर्यजनक घटना हुई कान्हा का पूरा शरीर पंचत्व में विलीन हो गया लेकिन उनका हृदय धड़कता रहा.


मूर्तियां बदलते वक्त बरती जाती है ये सावधानियां


मान्यता है कि आज भी जगन्नाथ जी की मूर्ति में श्रीकृष्ण का दिल सुरक्षित है. भगवान के इस हृदय अंश को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है. मंदिर की परंपरा के अनुसार जब हर 12 साल में मंदिर की मूर्ति बदली जाती हैं तो ऐसे में इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में स्थापित कर दिया जाता है. इस दौरान कई कड़े नियम अपनाए जाते हैं.


जब नई मूर्तियां स्थापित होती हैं तो मंदिर के आसपास अंधेरा कर दिया जाता है.साथ ही जो पुजारी ये कार्य करता है उसकी आंखों में पट्टी बंधी होती है और हाथों में कपड़ा लपेट दिया जाता है. कहते हैं कि इस रस्म को जिसने देख लिया उसकी मृत्यु हो जाती है.

कर्ण की समाधि

 सूर्य पुत्र अंगराज कर्ण को भगवान श्रीकृष्ण ने दिया वरदान 

कुछ लोग धर्म का मजाक उड़ाते हैं कुछ नास्तिक लोग कहते हैं कि भगवान है ही नहीं सारे ग्रंथ काल्पनिक है जो ब्राह्मणों ने अपने स्वार्थ के लिए लिखें तो "फिर यह क्या है"..यह बरगद का वह पेड़ है जो 7000 साल से आज तक ऐसा ही है इस पेड़ पर सिर्फ तीन पत्ते आते हैं जबकि बरगद का पेड़ बहुत विशाल होता है इस पेड़ का तना आज तक 1 इंच से ज्यादा नहीं हुआ और तीन पत्ते के अलावा चौथा पत्ता नहीं आया और यह तीन पत्ते ब्रह्मा विष्णु महेश के संकेत है। यह पेड सूरत के पास तापी नदी पर स्थित है यह महाभारत के योद्धा अंगराज कर्ण की समाधि है । अब आप सोच रहे होंगे कि युद्ध तो कुरुक्षेत्र हरियाणा में हुआ था तो कर्ण को समाधि सूरत में क्यों दी गई। इसके पीछे कर्ण द्वारा मांगा गया वह वरदान था जिसे भगवान कृष्ण ने पूरा किया जब कर्ण ने कवच और कुंडल इंद्र को दान किए थे तब इंद्र से एक शक्ति बांण और एक वरदान मांगा था कि मैं अधर्म का साथ दे रहा हूं इसलिए मेरी मृTयु निश्चित है परंतु मेरा अंतिम संस्कार कुंवारी जमीन पर किया जाए अर्थात जहां पहले किसी का अंतिम संस्कार ना किया गया हो युद्ध में अर्जुन के हाथों जब कर्ण का वध हुआ. तो कृष्णा ने पांचों पांडवों को बताया कि ये तुम्हारे बड़े भाई है इनकी अंतिम इच्छा थी कि इनका अंतिम संस्कार कुंवारी जमीन पर किया जाए और मेरी दृष्टि में इस पृथ्वी पर सिर्फ एक ही जगह ही तापी नदी के पास नजर आ रही है तब इंद्र ने अपना रथ भेजा और कृष्ण पांचो पांडव और कर्ण के शरीर को आकाश मार्ग से तापी नदी के पास लाए यहां भगवान कृष्ण ने उस ऐक इंच जमीन पर अपना अमुक बांण छोड़ा बांण के ऊपर कर्ण का अंतिम संस्कार हुआ। कृष्ण ने कहा था कि युगो युगांतर तक इस जगह ऐक बरगद का पेड़ रहेगा जिस पर मात्र तीन पत्ते ही आयेगें तब से आज तक इस बरगद के पेड़ पर चौथा पत्ता नही आया और ना ये ऐक इंच से ज्यादा चोड़ा हुआ यहां कर्ण का मंदिर बना हुआ है यहां सभी की मनोकामनाएं पूरी हो जाती दानवीर कर्ण किसी को खाली हाथ नहीं जाने देता...


जय श्रीकृष्णा,जय गोविंदा, जय सनातन धर्म ✨🙏💖🕉️

पतलो की माग

 दोने पत्तल का महत्व क्या आप जानते हैं नहीं तो जानें यह लाभकारी गुण जो आपको और पर्यावरण दोनों को तन्दरुस्त रखते हैं


एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति, इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी।


क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये #भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था? नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये "बुफे"जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नही पाती।

जैसा कि हम जानते है पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है। तो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है? 


* लकवा से पीड़ित #व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है।

* जिन लोगों को जोड़ो के #दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए।

* जिनकी #मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए।

* पलाश के पत्तों से बनी #पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है।

* केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे #शुभ माना जाता है ,इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है।

* पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी #प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है।

* पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है।


    पत्तले #प्राकतिक रूप से स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है| 

अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को #रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है।


* अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे #प्रदूषण कम होगा। डिस्पोजल के कारण जो हमारी #मिट्टी, नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा।


* जो मासूम #जानवर इन #प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा।


सबसे बड़ी बात पत्तले, डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है।

ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी #संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का #विश्व मे कोई सानी नही है।

अनपढ़

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*एक मध्यम वर्गीय परिवार के एक लड़के ने 12वीं की परीक्षा में 90% अंक प्राप्त किए ।*


*पिता, मार्कशीट देखकर खुशी-खुशी अपनी बीवी को कहा कि बना लीजिए मीठा दलिया, स्कूल की परीक्षा में आपके लाड़ले को 90% अंक मिले हैं ..!*


 *माँ किचन से दौड़ती हुई आई और बोली, , "..मुझे भी बताइये, देखती हूँ...!*


 *इसी बीच लड़का फटाक से बोला..."बाबा उसे रिजल्ट कहाँ दिखा रहे हैं ?... क्या वह पढ़-लिख सकती है ? वह तो अनपढ़ है ...!"*


 *अश्रुपुर्ण आँखों से पल्लु से आंखें पौंछती हुई माँ दलिया बनाने चली गई ।*


*ये बात मेरे पिता ने तुरंत देखा ...! फिर उन्होंने लड़के के कहे हुए वाक्यों में जोड़ा, और कहा... "हां रे ! वो भी सच है...!*


*"जब हमारी शादी हुई तो तीन महीने के अंदर ही तुम्हारी माँ गर्भवती हो गई.. मैंने सोचा, शादी के बाद कहीं घुमने नहीं गए.. एक दूसरे को ठीक से हम समझे भी नही हैं, चलो इस बार अबॉर्शन करवा कर आगे चांस लेते हैं.. लेकिन तुम्हारी माँ ने ज़ोर देकर कहा "नहीं" बाद में चाँस नहीं.... घूमना फिरना, और आपस में समझना भी नहीं, और फिर तेरा जन्म हुआ..... वो अनपढ़ थी ना....!*


*जब तु गर्भ में था, तो उसे दूध बिल्कुल पसंद नहीं था, उसने अपने आपको स्वस्थ बनाने के लिए हर दिन नौ महीने तक दूध पिया ...क्योंकि वो अनपढ़ थी ना ...*


 *तुझे सुबह सात बजे स्कूल जाना रहता था, इसलिए उसे सुबह पांच बजे उठकर तुम्हारा मनपसंद नाश्ता और डिब्बा बनाती थी.....क्योंकि वो अनपढ़ थी ना ...*


 *जब तुम रात को पढ़ते-पढ़ते सो जाते थे, तो वह आकर तुम्हारी कॉपी और किताब बस्ते में भरकर, फिर तुम्हारा शरीर ओढ़ना से ढँक देती थी और उसके बाद ही सोती थी... क्योंकि अनपढ़ थी ना ...*


 *बचपन में तुम ज्यादातर समय बीमार रहते थे... तब वो रात- रात भर जागकर वापस जल्दी उठती थी और सुबह का काम पर लग जाती थी....क्योंकि वो अनपढ़ थी ना...*

 

 *तुम्हारे ब्रांडेड कपड़े लाने के लिये मेरे पीछे पड़ती थी और खुद सालों तक एक ही साड़ी पर रहती थी । क्योंकि वो अनपढ़ थी ना....* 


*बेटा .... पढ़े-लिखे लोग पहले अपना स्वार्थ और मतलब देखते हैं.. लेकिन आपकी माँ ने आज तक कभी अपने लिए कुछ नहीं देखा। क्योंकि अशिक्षित है ना वो...*



  *वो खाना बनाकर और हमें परोसकर,कभी-कभी खुद खाना भूल जाती थी... इसलिए मैं गर्व से कहता हूं कि 'तुम्हारी माँ अशिक्षित है...'*


 *यह सब सुनकर लड़का रोते रोते, लिपटकर अपनी माँ से बोला.. "माँ, मुझे तो कागज पर 90% अंक ही मिले हैं। लेकिन आप मेरे जीवन को 100% बनाने वाली पहली शिक्षक हैं।*


*माँ, मुझे आज 90% अंक मिले हैं, फिर भी मैं अशिक्षित हूँ और आपके पास पीएचडी के ऊपर की उच्च डिग्री है।क्योंकि आज मैं अपनी माँ के अंदर छुपे रूप में डॉक्टर,शिक्षक,वकील,ड्रेस डिजाइनर,बेस्ट कुक इन सभी के दर्शन कर लिये..!!

   *🙏🏻🙏🏽🙏🏾जय श्री कृष्ण*🙏🏿🙏🙏🏼

मौत का भय से जीत

*मृत्यु का भय....*

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किसी नगर में एक आदमी रहता था। उसने परदेश के साथ व्यापार किया। मेहनत फली, कमाई हुई और उसकी गिनती सेठों में होने लगी। महल जैसी हवेली बन गई। वैभव और बड़े परिवार के बीच उसकी जवानी बड़े आनंद से बीतने लगी।


एक दिन उसका एक संबंधी किसी दूसरे नगर से आया। बातचीत के बीच उसने बताया कि उसके यहां का सबसे बड़ा सेठ गुजर गया। बेचारे की लाखों की धन-संपत्ति पड़ी रह गई।


बात सहज भाव से कही गई थी, पर उस आदमी के मन को डगमगा गई। हां उस सेठ की तरह एक दिन वह भी तो मर जाएगा। उसी क्षण से उसे बार-बार मौत की याद सताने लगी। हाय मौत आएगी, उसे ले जाएगी और सबकुछ यहीं छूट जाएगा! मारे चिंता के उसकी देह सूखने लगी। देखने वाले देखते कि उसे किसी चीज की कमी नहीं है, पर उसके भीतर का दुख ऐसा था कि किसी से कहा भी नहीं जा सकता था। धीरे-धीरे वह बिस्तर पर पड़ गया। बहुतेरा इलाज किया गया, लेकिन उसका रोग कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। एक दिन एक साधु उसके घर पर आया। उस आदमी ने बेबसी से उसके पैर पकड़ लिए और रो-रोकर अपनी व्यथा उसे बता दी।


सुनकर साधु हंस पड़ा और बोला:-"तुम्हारे रोग का इलाज तो बहुत आसान है।"


उस आदमी के खोए प्राण मानो लौट आए| अधीर होकर उसने पूछा:-"स्वामीजी, वह इलाज क्या है!"


साधु ने कहा:- "देखो मौत का विचार जब मन में आए, जोर से कहो जब तक मौत नहीं आएगी, मैं जीऊंगा। इस नुस्खे को सात दिन तक आजमाओ, मैं अगले सप्ताह आऊंगा।"

और हां नेक कर्म व दान कभी मत छोड़ना

सात दिन के बाद साधु आए तो देखते क्या हैं, वह आदमी बीमारी के चंगुल से बाहर आ गया है और आनंद से गीत गा रहा है। साधु को देखकर वह दौड़ा और उसके चरणों में गिरकर बोला:- "महाराज, आपने मुझे बचा लिया। आपकी दवा ने मुझ पर जादू का-सा असर किया। मैंने समझ लिया कि जिस दिन मौत आएगी, उसी दिन मरूंगा, उससे पहले नहीं।"


साधु ने कहा - "वत्स, मौत का डर सबसे बड़ा डर है। वह जितनों को मारता है मौत उतनों को नहीं मारती"..!!

   *🙏🏼🙏🙏🏿जय श्री कृष्ण*🙏🏾🙏🏽🙏🏻