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*सुख की खौज....*
एक व्यक्ति अपने गुरु के पास गया और बोला, गुरुदेव, दुख से छूटने का कोई उपाय बताइए...
गुरु ने कहा, बहूत आसान है, उस के लिए एक काम करो, जो आदमी सबसे सुखी है, उसके पहने हुए जूते लेकर आओ, फिर मैं तुझे दुख से छूटने का उपाय बता दूंगा...
शिष्य चला गया, एक आलिशान घर में जाकर पूछा, भाई, तुम तो बहुत सुखी लगते हो, अपने जूते सिर्फ आज के लिए मुझे दे दो, तब उसने कहा, कमाल करते हो भाई ! मेरा पड़ोसी इतना बदमाश है कि क्या कहूं ? ऐसी स्थिति में मैं सुखी कैसे रह सकता हूं ? मैं तो बहुत दुखी इंसान हूं...
वह दूसरे घर गया, दूसरा बोला, अब क्या कहूं भाई ? सुख की तो बात ही मत करो, मैं तो पत्नी की वजह से बहुत परेशान हूं, ऐसी जिंदगी बिताने से तो अच्छा है कि कहीं जाकर साधु बन जाऊं, सुखी आदमी देखना चाहते हो तो किसी और घर जाओ...
वह तीसरे घर गया, चौथे के घर गया, किसी की पत्नी के पास गया तो वह पति को क्रूर बताती, पति के पास गया तो वह पत्नी को दोषी कहता, पिता के पास गया तो वह पुत्र को बदमाश बताता, पुत्र के पास गया तो पिता की वजह से खुद को दुखी बताता, सैकड़ों-हजारों घरों के चक्कर लगा आया, सुखी आदमी के जूते मिलना तो दूर खुद के ही जूते घिस गए...
शाम को वह गुरु के पास आया और बोला, मैं तो घूमते-घूमते परेशान हो गया, न तो कोई सुखी मिला और न सुखी आदमी के जूते...
गुरु ने पूछा, लोग क्यों दुखी हैं ?
उन्हें किस बात का दुख है ?
उसने कहा, किसी का पड़ोसी खराब है, कोई पत्नी से परेशान, कोई पति से दुखी तो कोई पुत्र से परेशान है, आज हर आदमी दूसरे आदमी के कारण दुख भोग रहा है...
तब गुरु ने बताया, सुख का सूत्र है दूसरे की ओर नहीं, बल्कि अपनी ओर देखना, खुद की काबिलियत पर गौर करो, प्रतिस्पर्द्धा करनी है तो खुद से करो, दूसरों से नहीं...
यह जीवन हमारी यात्रा है, दूसरों को देखकर अपना रास्ता मत बदलो, खुद को सुनो, खुद को देखो, यही सुखी होने का एक मात्र रास्ता है...
*जय श्री राधेकृष्ण....*
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